मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे से ही लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में लगे हुए हैं. प्रोजेक्ट गौशाला के जरिए चार माह में एक हजार गौशालाएं बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. प्रोजेक्ट में रोजगार की रणनीति भी उसी तरह की है, जिस तरह से संघ गाय के जरिए रोजगार की वकालत करता रहा है. किसान की कर्ज माफी के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान की छवि को किसान विरोधी बताने की कोशिश भी की जा रही है. बुर्जुगों को कुंभ स्नान की योजना भी चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं. एक फरवरी से वंदे मातरम के गायन को भी नए रूप में शुरू किया जा रहा है. राज्य मंत्रालय पर पिछले माह वंदेमातरम का गायन न होने से विवाद पैदा हुआ था. गौशाला के जरिए रोजगार का लॉलीपॉप भारतीय जनता पार्टी गाय की राजनीति करने में सबसे आगे रही है. कमलनाथ सरकार के दावों पर यदि यकीन किया जाए तो राज्य में कुल संचालित 614 गौशालाएं हैं, जो कि निजी क्षेत्र में संचालित हो रही हैं. अर्थात पंद्रह साल के बीजेपी शासन में एक भी सरकारी गौशाला नहीं खोली गई. निजी क्षेत्र में संचालित होने वाली सौ से अधिक गौशालाएं ऐसी हैं, जिनमें क्षमता से अधिक गाय रखी गईं हैं. सड़कों से निराश्रित पशुओं एवं गायों को हटाने के कमलनाथ सरकार के निर्देश के बाद देवरी की एक गौशाला में छह गायों की ठंड के कारण मौत हो गई. राज्य की सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं के कारण सैकड़ों जानें हर साल जाती हैं. राज्य में गाय को लेकर राजनीति हर सरकार में होती रही है. 90 के दशक में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने गौवध पर रोक निर्णय लिया था. 1995 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गौ सेवा आयोग का गठन किया था. इसके बाद 2004 में बाबूलाल गौर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार गौवंश प्रतिशेध कानून लेकर आई थी. इस कानून के लागू होने के बाद भी गायों के संरक्षण के लिए कोई ठोस काम पिछले डेढ़ दशक में नहीं हुआ. कार्य योजना जरूर बनाई गईं. नंदी शाला योजना के जिए गोवंश की वृद्धि की योजना इसमें प्रमुख थी. पिछले तीन वर्षों में देश भर में हुई मॉब लिचिंग की घटनाओं के बाद गाय को लेकर सियासी पारा हमेशा चढ़ा हुआ दिखाई दिया. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भी गाय का उपयोग चुनावी मुद्दे के तौर किया था. कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में गौ शालाएं खोलने का वादा किया था. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अगले चार माह में एक लाख गौ शालाएं खोलने का निर्णय लिया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिक्रिया भी ट्विटर पर तत्काल आ गई. शिवराज सिंह चौहान ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि कमलनाथ गाय को राजनीतिक मुद्दा न बनाएं, जरूरी है कि गायों के लिए दाना, पानी और भूसे का समुचित इंतजाम हो. कमलनाथ ने प्रोजक्ट गौ-शाला के तहत सरकारी गौ शालाओं में ट्यूबवेल और चारागाह विकास, बायोगैस प्लांट लगाने की योजना को भी मंजूरी दी है. इस योजना के जरिए 40 लाख मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध होने का भी दावा किया गया है. गौ शालाओं के जरिए रोजगार देने की अवधारणा का पक्षधर राष्ट्रीय स्वयं संघ भी रहा है. उमा भारती जब मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, तब गौ शालाओं के जरिए रोजगार पर लंबी बहस भी चली थी. कमलनाथ सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को सब्सटेंशियल मॉडल के तौर पर विकसित करने के लिए मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी इंकबाल सिंह बैंस के नेतृत्व में एक समिति भी गठित की है. कमलनाथ की कोशिश है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले प्रोजेक्ट गौशाला जमीन पर कार्य करता दिखाई दे. कमलनाथ इस मुद्दे के जरिए राम मंदिर के मुद्दे से होने वाले वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की कवायद कर रहे हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि प्रोजेक्ट गौ-शाला से शहरों और गांवों में निराश्रित पशुओं द्वारा पहुंचाए जा रहे नुकसान से निजात मिलेगी. निराश्रित पशुओं को आश्रय मिलेगा. साथ ही ग्रामीण रोजगार के भी अवसर निर्मित होंगे. चार माह बाद इन गौ-शालाओं का विस्तार होगा. कुंभ के बहाने दर्जन भर लोकसभा सीटों पर नजर भारतीय जनता पार्टी सरकार के 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की तीर्थ दर्शन योजना काफी लोकप्रिय योजनाओं में रही है. उनकी इस योजना का अनुसरण कई राज्यों ने किया. योजना के तहत राज्य के बुर्जुगों को सरकारी खर्चे पर तीर्थ यात्रा कराई जाती थी. विधानसभा चुनाव में इस योजना के कारण ही बुर्जुगों के बीच शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता सबसे ऊपर दिखाई दी थी. कमलनाथ, इस योजना से किसी भी तरह की छेड़छाड़ कर नए विवाद को जन्म नहीं देना चाहते हैं. वे भी इस योजना का राजनीतिक लाभ अपने पक्ष में लेना चाहते हैं. कमलनाथ सरकार ने प्रयागराज में चल रहे कुंभ में राज्य के 3600 तीर्थ यात्रियों को भेजने का निर्णय लिया है. इस योजना के लिए चलाई जाने वाली विशेष ट्रेन का रूट लोकसभा चुनाव के समीकरणों को ध्यान में रखकर तय किया गया है. विशेष ट्रेन से जाने वाले यात्री दर्जन भर लोकसभा सीटों के हैं. 12 फरवरी को भोपाल से रवाना होने वाली ट्रेन में विदिशा, सागर और दमोह के यात्री शामिल होंगे. बुरहानपुर से ट्रेन में खंडवा, हरदा और जबलपुर के यात्री होंगे. शिवपुरी से रवाना होने वाली ट्रेन में अशोक नगर, कटनी के यात्री होंगे. परासिया से रवाना होने वाली ट्रेन में छिंदवाड़ा, बैतूल, इटारसी-होशंगाबाद-नरसिंहपुर के तीर्थ यात्री होंगे. यात्रियों के लिए भोजन, चाय, नाश्ता, रुकने की व्यवस्था और तीर्थ-स्थल तक बसों से ले जाने और लाने के लिए गाइड की व्यवस्था रहेगी. कुंभ जाने वाले तीर्थ-यात्रियों से अपने व्यक्तिगत उपयोग की सामग्री अपने साथ रखने के लिये कहा गया है. वंदेमातरम से राष्ट्रभक्ति दिखाने की कवायद बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य मंत्रालय में हर माह की पहली तारीख को वंदेमातरम का गायन शुरू किया गया था. लगभग 14 साल बाद यह परंपरा पहली जनवरी को टूट गई थी. इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ. विवाद के बाद कमलनाथ सरकार की ओर से सफाई दी गई थी कि वंदेमातरम के परंपरागत गायन में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भागीदारी काफी सीमित थी. लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए वंदेमातरम के गायन कार्यक्रम को व्यापक स्वरूप दिया गया है. पुलिस बैंड का इंतजाम भी किया गया है. बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता भी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तैयार किए गए हैं. ऋण माफी घोटाले से किसान पुत्र मुख्यमंत्री छवि पर हमला मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्य के किसानों के दो लाख रुपए तक के ऋण माफ करने का फैसला पहले ही ले लिया था. किसानों पर बैंक का बकाया ऋण माफ करने की सरकारी प्रक्रिया अभी चल ही रही है. 22 फरवरी तक किसानों के खाते में दो लाख रुपए तक के ऋण की राशि बैंक खाते में जमा कराने का लक्ष्य रखा गया है. लगभग 17 हजार करोड़ रुपए इस योजना पर खर्च होने की संभावना प्रकट की जा रही है. कमलनाथ सरकार द्वारा ऋण माफी के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के दौरान चार सौ से अधिक ऐसी शिकायतें आईं हैं, जिनमें कहा गया है कि ऋण लिया नहीं और बैंक ने खातेदार को कर्जदार बता दिया. मुख्यमंत्री कमलनाथ का दावा है कि ऋण घोटाला तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक का है. राज्य के सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, बीजेपी नेताओं की तुलना मोहम्मद गजनवी से कर रहे हैं. डॉ. गोविंद सिंह कहते हैं कि गजनवी ने देश पर रहम किया था लेकिन, भाजपाइयों ने बेरहम होकर लूटा है. दरअसल यूपीए सरकार ने किसानों की ऋण माफी के लिए वर्ष 2008 में डेढ़ हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि उपलब्ध कराई थी. इस राशि में भी 100 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला होना बीजेपी सरकार ने ही स्वीकार किया था. इसके अलावा शून्य ब्याज दर पर कर्ज देने में भी घोटाला पकड़ में आया. कमलनाथ सरकार अब इन घोटालों के जरिए किसानों के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि शिवराज सिंह चौहान किसान पुत्र जरूर थे, लेकिन किसान हितैषी नहीं थे.
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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे से ही लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में लगे हुए हैं. प्रोजेक्ट गौशाला के जरिए चार माह में एक हजार गौशालाएं बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. प्रोजेक्ट में रोजगार की रणनीति भी उसी तरह की है, जिस तरह से संघ गाय के जरिए रोजगार की वकालत करता रहा है. किसान की कर्ज माफी के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान की छवि को किसान विरोधी बताने की कोशिश भी की जा रही है. बुर्जुगों को कुंभ स्नान की योजना भी चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं. एक फरवरी से वंदे मातरम के गायन को भी नए रूप में शुरू किया जा रहा है. राज्य मंत्रालय पर पिछले माह वंदेमातरम का गायन न होने से विवाद पैदा हुआ था. गौशाला के जरिए रोजगार का लॉलीपॉप भारतीय जनता पार्टी गाय की राजनीति करने में सबसे आगे रही है. कमलनाथ सरकार के दावों पर यदि यकीन किया जाए तो राज्य में कुल संचालित 614 गौशालाएं हैं, जो कि निजी क्षेत्र में संचालित हो रही हैं. अर्थात पंद्रह साल के बीजेपी शासन में एक भी सरकारी गौशाला नहीं खोली गई. निजी क्षेत्र में संचालित होने वाली सौ से अधिक गौशालाएं ऐसी हैं, जिनमें क्षमता से अधिक गाय रखी गईं हैं. सड़कों से निराश्रित पशुओं एवं गायों को हटाने के कमलनाथ सरकार के निर्देश के बाद देवरी की एक गौशाला में छह गायों की ठंड के कारण मौत हो गई. राज्य की सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं के कारण सैकड़ों जानें हर साल जाती हैं. राज्य में गाय को लेकर राजनीति हर सरकार में होती रही है. 90 के दशक में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने गौवध पर रोक निर्णय लिया था. 1995 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने गौ सेवा आयोग का गठन किया था. इसके बाद 2004 में बाबूलाल गौर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार गौवंश प्रतिशेध कानून लेकर आई थी. इस कानून के लागू होने के बाद भी गायों के संरक्षण के लिए कोई ठोस काम पिछले डेढ़ दशक में नहीं हुआ. कार्य योजना जरूर बनाई गईं. नंदी शाला योजना के जिए गोवंश की वृद्धि की योजना इसमें प्रमुख थी. पिछले तीन वर्षों में देश भर में हुई मॉब लिचिंग की घटनाओं के बाद गाय को लेकर सियासी पारा हमेशा चढ़ा हुआ दिखाई दिया. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भी गाय का उपयोग चुनावी मुद्दे के तौर किया था. कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में गौ शालाएं खोलने का वादा किया था. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अगले चार माह में एक लाख गौ शालाएं खोलने का निर्णय लिया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिक्रिया भी ट्विटर पर तत्काल आ गई. शिवराज सिंह चौहान ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि कमलनाथ गाय को राजनीतिक मुद्दा न बनाएं, जरूरी है कि गायों के लिए दाना, पानी और भूसे का समुचित इंतजाम हो. कमलनाथ ने प्रोजक्ट गौ-शाला के तहत सरकारी गौ शालाओं में ट्यूबवेल और चारागाह विकास, बायोगैस प्लांट लगाने की योजना को भी मंजूरी दी है. इस योजना के जरिए 40 लाख मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध होने का भी दावा किया गया है. गौ शालाओं के जरिए रोजगार देने की अवधारणा का पक्षधर राष्ट्रीय स्वयं संघ भी रहा है. उमा भारती जब मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, तब गौ शालाओं के जरिए रोजगार पर लंबी बहस भी चली थी. कमलनाथ सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को सब्सटेंशियल मॉडल के तौर पर विकसित करने के लिए मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी इंकबाल सिंह बैंस के नेतृत्व में एक समिति भी गठित की है. कमलनाथ की कोशिश है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले प्रोजेक्ट गौशाला जमीन पर कार्य करता दिखाई दे. कमलनाथ इस मुद्दे के जरिए राम मंदिर के मुद्दे से होने वाले वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की कवायद कर रहे हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि प्रोजेक्ट गौ-शाला से शहरों और गांवों में निराश्रित पशुओं द्वारा पहुंचाए जा रहे नुकसान से निजात मिलेगी. निराश्रित पशुओं को आश्रय मिलेगा. साथ ही ग्रामीण रोजगार के भी अवसर निर्मित होंगे. चार माह बाद इन गौ-शालाओं का विस्तार होगा. कुंभ के बहाने दर्जन भर लोकसभा सीटों पर नजर भारतीय जनता पार्टी सरकार के 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की तीर्थ दर्शन योजना काफी लोकप्रिय योजनाओं में रही है. उनकी इस योजना का अनुसरण कई राज्यों ने किया. योजना के तहत राज्य के बुर्जुगों को सरकारी खर्चे पर तीर्थ यात्रा कराई जाती थी. विधानसभा चुनाव में इस योजना के कारण ही बुर्जुगों के बीच शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता सबसे ऊपर दिखाई दी थी. कमलनाथ, इस योजना से किसी भी तरह की छेड़छाड़ कर नए विवाद को जन्म नहीं देना चाहते हैं. वे भी इस योजना का राजनीतिक लाभ अपने पक्ष में लेना चाहते हैं. कमलनाथ सरकार ने प्रयागराज में चल रहे कुंभ में राज्य के 3600 तीर्थ यात्रियों को भेजने का निर्णय लिया है. इस योजना के लिए चलाई जाने वाली विशेष ट्रेन का रूट लोकसभा चुनाव के समीकरणों को ध्यान में रखकर तय किया गया है. विशेष ट्रेन से जाने वाले यात्री दर्जन भर लोकसभा सीटों के हैं. 12 फरवरी को भोपाल से रवाना होने वाली ट्रेन में विदिशा, सागर और दमोह के यात्री शामिल होंगे. बुरहानपुर से ट्रेन में खंडवा, हरदा और जबलपुर के यात्री होंगे. शिवपुरी से रवाना होने वाली ट्रेन में अशोक नगर, कटनी के यात्री होंगे. परासिया से रवाना होने वाली ट्रेन में छिंदवाड़ा, बैतूल, इटारसी-होशंगाबाद-नरसिंहपुर के तीर्थ यात्री होंगे. यात्रियों के लिए भोजन, चाय, नाश्ता, रुकने की व्यवस्था और तीर्थ-स्थल तक बसों से ले जाने और लाने के लिए गाइड की व्यवस्था रहेगी. कुंभ जाने वाले तीर्थ-यात्रियों से अपने व्यक्तिगत उपयोग की सामग्री अपने साथ रखने के लिये कहा गया है. वंदेमातरम से राष्ट्रभक्ति दिखाने की कवायद बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य मंत्रालय में हर माह की पहली तारीख को वंदेमातरम का गायन शुरू किया गया था. लगभग 14 साल बाद यह परंपरा पहली जनवरी को टूट गई थी. इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ. विवाद के बाद कमलनाथ सरकार की ओर से सफाई दी गई थी कि वंदेमातरम के परंपरागत गायन में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भागीदारी काफी सीमित थी. लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए वंदेमातरम के गायन कार्यक्रम को व्यापक स्वरूप दिया गया है. पुलिस बैंड का इंतजाम भी किया गया है. बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता भी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तैयार किए गए हैं. ऋण माफी घोटाले से किसान पुत्र मुख्यमंत्री छवि पर हमला मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्य के किसानों के दो लाख रुपए तक के ऋण माफ करने का फैसला पहले ही ले लिया था. किसानों पर बैंक का बकाया ऋण माफ करने की सरकारी प्रक्रिया अभी चल ही रही है. 22 फरवरी तक किसानों के खाते में दो लाख रुपए तक के ऋण की राशि बैंक खाते में जमा कराने का लक्ष्य रखा गया है. लगभग 17 हजार करोड़ रुपए इस योजना पर खर्च होने की संभावना प्रकट की जा रही है. कमलनाथ सरकार द्वारा ऋण माफी के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के दौरान चार सौ से अधिक ऐसी शिकायतें आईं हैं, जिनमें कहा गया है कि ऋण लिया नहीं और बैंक ने खातेदार को कर्जदार बता दिया. मुख्यमंत्री कमलनाथ का दावा है कि ऋण घोटाला तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक का है. राज्य के सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, बीजेपी नेताओं की तुलना मोहम्मद गजनवी से कर रहे हैं. डॉ. गोविंद सिंह कहते हैं कि गजनवी ने देश पर रहम किया था लेकिन, भाजपाइयों ने बेरहम होकर लूटा है. दरअसल यूपीए सरकार ने किसानों की ऋण माफी के लिए वर्ष 2008 में डेढ़ हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि उपलब्ध कराई थी. इस राशि में भी 100 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला होना बीजेपी सरकार ने ही स्वीकार किया था. इसके अलावा शून्य ब्याज दर पर कर्ज देने में भी घोटाला पकड़ में आया. कमलनाथ सरकार अब इन घोटालों के जरिए किसानों के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि शिवराज सिंह चौहान किसान पुत्र जरूर थे, लेकिन किसान हितैषी नहीं थे.
Sunday, February 3, 2019
मध्यप्रदेश: गाय, किसान और हिंदुत्व से बीजेपी को मात देने की कांग्रेसी चाहत
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