साइबर संसार में वायरल हुई तस्वीर खुद ही सारी कहानी बयां कर देती है: इधर अंतरिम वित्तमंत्री पीयूष गोयल मध्यवर्ग, असंगठित क्षेत्र और किसानों के लिए अपने बजट भाषण में खुशी का खजाना लुटा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्साह से भरे हुए मेज थपथपाकर शाबासी दे रहे हैं तो उधर विपक्ष की बेंच पर बैठे मल्लिकार्जुन खड़गे की आंखें नीची हैं और राहुल गांधी का चेहरा एकदम बुझा हुआ है. चुनाव के ऐन पहले बजट आवंटन के जरिए वोट बटोरे जा सकते हैं- इस बात को साबित करने के पुख्ता आंकड़े तो खैर मौजूद नहीं हैं. आखिर जन-कल्याण के जो भी उपाय सुझाए जाते हैं उनकी कामयाबी अमल से ही तय होती है. सो, एनडीए सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों के लिए साल 2019-20 के अंतरिम बजट में निश्चित आय-सहायता की जो लोक-लुभावन घोषणा की है, उसे पहल के वास्तविक असर के नुमायां होने से पहले दिए गए एक राजनीतिक संदेश के तौर पर लेना चाहिए. मतदाताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है बजट लेकिन किसी पहल से बनने वाली धारणा भी खास अहमियत रखती है- दरअसल धारणा खुद में एक ताकतवर राजनीतिक हथियार है. पांच लाख तक की सालाना आमदनी को पूरी तरह से टैक्स-फ्री, वेतनभोगी टैक्सपेयर के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन लिमिट 40 हजार से बढ़ाकर 50 हजार, दो हैक्टेयर तक की जोत के छोटे और सीमांत किसानों को सुनिश्चित आमदनी सहायता के रूप में सालाना 6000 रुपए का प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण, संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए 60 साल की उम्र के बाद 3000 रुपए की पेंशन की व्यवस्था, प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को उनके कर्जे के सूद पर 2 से 5 फीसद की कमी, ऑनलाइन खुदरा-बिक्री के बड़े कारोबारियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा झेल रहे व्यापारी समुदाय की सहायता के लिए एक नया रिटेल ट्रेड डिपार्टमेंट जो नियमों को नया स्वरूप देगा- ये तमाम उपाय मतदाताओं के खास तबके को ध्यान में रखकर घोषित किए गए हैं और इन तबकों के लिए इसमें एक संदेश निहित है. यों कहें कि हम यहां बजट को सरकार की आमदनी और खर्च का लेखा-जोखा होने की जगह चुनाव के ऐन पहले के वक्त में एक राजनीतिक बयान में तब्दील होता देख रहे हैं. ये भी पढ़ें: किसानों के खाते में 6 हजार डालकर अगले पांच साल कैश तो नहीं करना चाहती सरकार? एनडीए ने बजट प्रस्ताव को एक चुनावी घोषणापत्र में तब्दील कर दिया है- इसी डर के कारण यूपीए सरकार में वित्तमंत्री के पद पर रह चुके पी. चिदंबरम ने बजट-घोषणाओं को ‘वोट का खाता-बही’ करार दिया है. चिदंबरम के शब्दों से एक चिंता झांक रही है कि यह बजट कहीं मतदाताओं के मन में सकारात्मक छवि ना बना ले. It was not a Vote on Account. It was an Account for Votes. — P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) February 1, 2019 उनकी पार्टी के सहकर्मी शशि थरूर ने इसे अपनी खास अंग्रेजी में ‘ऊंची दुकान फीके पकवान’ करार दिया. उनका दावा है कि बजट में किसानों के लिए जो 500 रुपए महीने का प्रावधान किया गया है वह बहुत कम है और अगर सत्ता में कांग्रेस की सरकार होती तो ऐसी राहत मध्यवर्ग को भी दे सकती थी. कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बजट के ऐलानों को ‘जुमला’ करार दिया गया है. Budgetary warning: Budget announcements are subject to jumla risks, please read the Budget document carefully before believing. #Budget2019 #AakhriJumlaBudget pic.twitter.com/UtpmItaBIf — Congress (@INCIndia) February 1, 2019 कांग्रेस की शुरुआती प्रतिक्रियाओं में एक हताशा झांक रही है. जाहिर है, कांग्रेस भांप चुकी है कि एनडीए सरकार अपना राजनीतिक संदेश लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रही और अब उसे लगने लगा है कि चुनावों से पहले जो प्रचार अभियान चलेगा उसमें जैसे को तैसा की शैली में एक-दूसरे को निंदा-वचन कहे जाएंगे. मिसाल के लिए, गौर करें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों को ,6000 रुपये सालाना देने के प्रावधान को रोजाना के हिसाब में तब्दील किया और कहा कि यह तो किसानों का अपमान है. Dear NoMo, 5 years of your incompetence and arrogance has destroyed the lives of our farmers. Giving them Rs. 17 a day is an insult to everything they stand and work for. #AakhriJumlaBudget — Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 1, 2019 कुछ अहम बातें भी नजर आती हैं बजट में एक तरफ से राजनीतिक संदेशे दिए गए हैं तो दूसरी तरफ से इन संदेशों की काट में कुछ बयान आ रहे हैं लेकिन बातों के जरिए होने वाले इस घात-प्रतिघात से बाहर निकलकर देखें तो इस बजट में कुछ अहिम बातें नजर आती हैं. चूंकि यह एक अंतरिम बजट है सो इसकी नोंक-पलक दुरुस्त करने की गुंजाइश हमेशा ही बनी रहेगी. लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अब जिस राह पर बढ़ चली है, उसके रुझान पीयूष गोयल के भाषण में स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं. अव्वल तो यह कि हम पहली बार लोक-कल्याण का एक ऐसा ढांचा खड़ा होता देख रहे हैं जो सही मायनों में कारगर साबित हो सकता है. छोटे और सीमांत किसान को गारंटीशुदा आमदनी सहायता देने के प्रावधान को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का नाम दिया गया है. पीएम-किसान के तहत किसानों के बैंक-खाते में तीन किश्तों में साल में 6000 रुपए की रकम हस्तांतरित की जाएगी. इसके दो अहम नतीजे सामने आएंगे. एक तो भ्रष्टाचार और चोरबाजारी की आशंका कम हो जाएगी. दूसरे, बाजार को मनमाना मोड़ देना मुश्किल होगा. अभी तक सरकार ने कीमतों में हस्तक्षेप (जैसे सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य) के जरिए किसानों को आमदनी में सहायता प्रदान करने का तरीका अपनाया है. इसका असर बाजार पर अच्छा नहीं रहा. किसान बड़ी तादाद में वैसी चीजों का उत्पादन कर डालते थे जिनके खरीदार बहुत कम होते थे और इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार भी होता था. प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण से इन दोनों विसंगतियों पर रोक लगेगी. ये भी पढ़ें: Budget 2019: किसान खुश तो सरकार खुश! या कोई दूसरी तस्वीर भी बनेगी? निरंजन राजाध्यक्ष सरीखे अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान-परिवारों को इस योजना के जरिए फायदा पहुंचेगा और अगर देश में कुल परिवारों की तादाद 25 करोड़ मानकर चलें तो फिर पीएम-किसान योजना के जरिए हम सार्विक आय-सहायता (यूनिवर्सल इनकम सपोर्ट) का आधा रास्ता तय कर चुके. इस योजना के कुछ फायदे और भी हैं. बेशक, पीएम किसान योजना के कारण सरकारी खजाने पर भार बढ़ा है और एनडीए सरकार वित्तीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसद तक सीमित रखने के अपने लक्ष्य से चूक गई है (अब वित्तीय घाटा जीडीपी के 3.4 प्रतिशत हो गया है), लेकिन बढ़ा हुआ वित्तीय आवंटन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उछाल देने में मददगार साबित होगा. अब तक मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिला है बजट का दूसरा अहम संदेश मध्यवर्ग से जुड़ा है. एक जमाने से टैक्सदाताओं के एक विशाल महत्वाकांक्षी वर्ग से जिसमें निम्न, मध्यम और ऊपरला कामगार तबका, स्वतंत्र पेशेवर और वणिज्य-व्यापार में लगा समुदाय शामिल है- उम्मीद की जाती रही है कि वह राष्ट्र-निर्माण के हक में टैक्स अदा करे लेकिन इस विशाल मध्यवर्गीय तबके को इसके बदले में बहुत कम हासिल हुआ है. नरेंद्र मोदी की सरकार को इस विशाल मध्यवर्गीय तबके का भारी समर्थन हासिल है लेकिन मोदी सरकार ने भी इस तबके के साथ वही पुरानी रणनीति अपनाई थी, उसे दुधारू गाय समझकर बरताव किया था और मानकर चला जा रहा था कि यह तबका तो बना ही है इसी खातिर. बात सिर्फ सालाना स्टैंडर्ड डिडक्शन में इजाफे या 5 लाख रुपए तक की आमदनी को टैक्समुक्त करने तक सीमित नहीं. बैंकों में जमा रकम से हासिल कर-योग्य सूद की सीमा 10 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने, मकान के किराए के मद में 2.4 लाख की रकम को स्रोत पर टैक्स कटौती से मुक्त करने और पूंजीगत लाभ के मद में 2 करोड़ तक की रकम को टैक्स के दायरे से बाहर रखने सरीखे ढेर सारे कदम उठाए गए हैं जिससे मध्यवर्ग को राहत मिलेगी, उसपर टैक्स का बोझ कम होगा. [caption id="attachment_188464" align="alignnone" width="1002"] पीयूष गोयल[/caption] इन उपायों से निकलता सबसे जरूरी संदेश यह है कि इस बार मध्यवर्ग को ताने-उलाहने नहीं दिए गए- यह नहीं कहा गया कि हे मध्यवर्गीय भद्रजन! आपका पवित्र कर्तव्य बनता है कि राष्ट्र-निर्माण के हक में टैक्स अदा करें, वैसा कोई व्यंग्य-बाण नहीं मारा गया जैसा कि 2012 में पी. चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते लोगों को सुनना पड़ा था (याद कीजिए, पी. चिदंबरम ने शहरी मध्यवर्ग को लक्ष्य करके एक सवाल के जवाब में कहा था कि जब आप 20 रुपए में आइसक्रीम खरीद सकते हैं तो फिर कीमतों के बढ़ने का इतना स्यापा क्यों करते हैं), इस बार सरकार ने मध्यवर्गीय तबके के योगदान को याद किया है और उसकी सराहना में कुछ शब्द कहे हैं. ये भी पढ़ें: Income Tax Slab 2019-20: गोयल की गुगली, सबको नहीं मिलेगा टैक्स छूट का फायदा! 'भारत की जनता और अपनी सरकार की तरफ से मैं सभी टैक्सदाताओं का राष्ट्र-निर्माण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद करता हूं. उनके इस योगदान के कारण समाज के गरीब और हाशिए के लोगों को बेहतर जीवन दे पाना मुमकिन हुआ है. आपके चुकाए टैक्स से हमें माताओं और बहनों को गरिमा का जीवन प्रदान करने, उन्हें शौचालय और गैस-कनेक्शन देने में मदद मिलती है- ये बहनें और माताएं पीढ़ियों से अंधकार में रहने को अभिशप्त थीं. जो टैक्स आप अदा करेंगे उससे 50 करोड़ भाई-बहनों, बच्चों को स्वास्थ्य-सेवा मुहैया कराई जा सकेगी. आप लोगों का ही योगदान है जो आज वन रैंक-वन पेंशन के जरिए हमारे रिटायर्ड जवानों को गरिमा, इज्जत और सुरक्षित भविष्य वाली जिंदगी मुहैया करा पाना मुमकिन हुआ है. टैक्सदाताओं का बहुत-बहुत धन्यवाद.' टैक्सदाताओं के योगदान को रेखांकित करते पीयूष गोयल के ये शब्द मध्यवर्गीय लोगों के एक हिस्से के दिल पर लगी चोट पर मरहम का काम कर सकते हैं. अपनी भावनाओं को पहुंची चोट के कारण मध्यवर्ग का यह हिस्सा बीजेपी के पाले से शायद दूर छिटक चला था. बेशक यह चतुराई भरा कदम है लेकिन राजनीति में चतुराई कोई अपराध नहीं.
from Latest News राजनीति Firstpost Hindi https://hindi.firstpost.com/politics/budget-2019-20-key-takeaways-this-budget-promises-a-feasible-welfare-system-and-much-needed-recognition-for-middle-class-tk-188575.html
साइबर संसार में वायरल हुई तस्वीर खुद ही सारी कहानी बयां कर देती है: इधर अंतरिम वित्तमंत्री पीयूष गोयल मध्यवर्ग, असंगठित क्षेत्र और किसानों के लिए अपने बजट भाषण में खुशी का खजाना लुटा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्साह से भरे हुए मेज थपथपाकर शाबासी दे रहे हैं तो उधर विपक्ष की बेंच पर बैठे मल्लिकार्जुन खड़गे की आंखें नीची हैं और राहुल गांधी का चेहरा एकदम बुझा हुआ है. चुनाव के ऐन पहले बजट आवंटन के जरिए वोट बटोरे जा सकते हैं- इस बात को साबित करने के पुख्ता आंकड़े तो खैर मौजूद नहीं हैं. आखिर जन-कल्याण के जो भी उपाय सुझाए जाते हैं उनकी कामयाबी अमल से ही तय होती है. सो, एनडीए सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों के लिए साल 2019-20 के अंतरिम बजट में निश्चित आय-सहायता की जो लोक-लुभावन घोषणा की है, उसे पहल के वास्तविक असर के नुमायां होने से पहले दिए गए एक राजनीतिक संदेश के तौर पर लेना चाहिए. मतदाताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है बजट लेकिन किसी पहल से बनने वाली धारणा भी खास अहमियत रखती है- दरअसल धारणा खुद में एक ताकतवर राजनीतिक हथियार है. पांच लाख तक की सालाना आमदनी को पूरी तरह से टैक्स-फ्री, वेतनभोगी टैक्सपेयर के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन लिमिट 40 हजार से बढ़ाकर 50 हजार, दो हैक्टेयर तक की जोत के छोटे और सीमांत किसानों को सुनिश्चित आमदनी सहायता के रूप में सालाना 6000 रुपए का प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण, संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए 60 साल की उम्र के बाद 3000 रुपए की पेंशन की व्यवस्था, प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को उनके कर्जे के सूद पर 2 से 5 फीसद की कमी, ऑनलाइन खुदरा-बिक्री के बड़े कारोबारियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा झेल रहे व्यापारी समुदाय की सहायता के लिए एक नया रिटेल ट्रेड डिपार्टमेंट जो नियमों को नया स्वरूप देगा- ये तमाम उपाय मतदाताओं के खास तबके को ध्यान में रखकर घोषित किए गए हैं और इन तबकों के लिए इसमें एक संदेश निहित है. यों कहें कि हम यहां बजट को सरकार की आमदनी और खर्च का लेखा-जोखा होने की जगह चुनाव के ऐन पहले के वक्त में एक राजनीतिक बयान में तब्दील होता देख रहे हैं. ये भी पढ़ें: किसानों के खाते में 6 हजार डालकर अगले पांच साल कैश तो नहीं करना चाहती सरकार? एनडीए ने बजट प्रस्ताव को एक चुनावी घोषणापत्र में तब्दील कर दिया है- इसी डर के कारण यूपीए सरकार में वित्तमंत्री के पद पर रह चुके पी. चिदंबरम ने बजट-घोषणाओं को ‘वोट का खाता-बही’ करार दिया है. चिदंबरम के शब्दों से एक चिंता झांक रही है कि यह बजट कहीं मतदाताओं के मन में सकारात्मक छवि ना बना ले. It was not a Vote on Account. It was an Account for Votes. — P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) February 1, 2019 उनकी पार्टी के सहकर्मी शशि थरूर ने इसे अपनी खास अंग्रेजी में ‘ऊंची दुकान फीके पकवान’ करार दिया. उनका दावा है कि बजट में किसानों के लिए जो 500 रुपए महीने का प्रावधान किया गया है वह बहुत कम है और अगर सत्ता में कांग्रेस की सरकार होती तो ऐसी राहत मध्यवर्ग को भी दे सकती थी. कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बजट के ऐलानों को ‘जुमला’ करार दिया गया है. Budgetary warning: Budget announcements are subject to jumla risks, please read the Budget document carefully before believing. #Budget2019 #AakhriJumlaBudget pic.twitter.com/UtpmItaBIf — Congress (@INCIndia) February 1, 2019 कांग्रेस की शुरुआती प्रतिक्रियाओं में एक हताशा झांक रही है. जाहिर है, कांग्रेस भांप चुकी है कि एनडीए सरकार अपना राजनीतिक संदेश लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रही और अब उसे लगने लगा है कि चुनावों से पहले जो प्रचार अभियान चलेगा उसमें जैसे को तैसा की शैली में एक-दूसरे को निंदा-वचन कहे जाएंगे. मिसाल के लिए, गौर करें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों को ,6000 रुपये सालाना देने के प्रावधान को रोजाना के हिसाब में तब्दील किया और कहा कि यह तो किसानों का अपमान है. Dear NoMo, 5 years of your incompetence and arrogance has destroyed the lives of our farmers. Giving them Rs. 17 a day is an insult to everything they stand and work for. #AakhriJumlaBudget — Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 1, 2019 कुछ अहम बातें भी नजर आती हैं बजट में एक तरफ से राजनीतिक संदेशे दिए गए हैं तो दूसरी तरफ से इन संदेशों की काट में कुछ बयान आ रहे हैं लेकिन बातों के जरिए होने वाले इस घात-प्रतिघात से बाहर निकलकर देखें तो इस बजट में कुछ अहिम बातें नजर आती हैं. चूंकि यह एक अंतरिम बजट है सो इसकी नोंक-पलक दुरुस्त करने की गुंजाइश हमेशा ही बनी रहेगी. लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अब जिस राह पर बढ़ चली है, उसके रुझान पीयूष गोयल के भाषण में स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं. अव्वल तो यह कि हम पहली बार लोक-कल्याण का एक ऐसा ढांचा खड़ा होता देख रहे हैं जो सही मायनों में कारगर साबित हो सकता है. छोटे और सीमांत किसान को गारंटीशुदा आमदनी सहायता देने के प्रावधान को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का नाम दिया गया है. पीएम-किसान के तहत किसानों के बैंक-खाते में तीन किश्तों में साल में 6000 रुपए की रकम हस्तांतरित की जाएगी. इसके दो अहम नतीजे सामने आएंगे. एक तो भ्रष्टाचार और चोरबाजारी की आशंका कम हो जाएगी. दूसरे, बाजार को मनमाना मोड़ देना मुश्किल होगा. अभी तक सरकार ने कीमतों में हस्तक्षेप (जैसे सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य) के जरिए किसानों को आमदनी में सहायता प्रदान करने का तरीका अपनाया है. इसका असर बाजार पर अच्छा नहीं रहा. किसान बड़ी तादाद में वैसी चीजों का उत्पादन कर डालते थे जिनके खरीदार बहुत कम होते थे और इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार भी होता था. प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण से इन दोनों विसंगतियों पर रोक लगेगी. ये भी पढ़ें: Budget 2019: किसान खुश तो सरकार खुश! या कोई दूसरी तस्वीर भी बनेगी? निरंजन राजाध्यक्ष सरीखे अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान-परिवारों को इस योजना के जरिए फायदा पहुंचेगा और अगर देश में कुल परिवारों की तादाद 25 करोड़ मानकर चलें तो फिर पीएम-किसान योजना के जरिए हम सार्विक आय-सहायता (यूनिवर्सल इनकम सपोर्ट) का आधा रास्ता तय कर चुके. इस योजना के कुछ फायदे और भी हैं. बेशक, पीएम किसान योजना के कारण सरकारी खजाने पर भार बढ़ा है और एनडीए सरकार वित्तीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसद तक सीमित रखने के अपने लक्ष्य से चूक गई है (अब वित्तीय घाटा जीडीपी के 3.4 प्रतिशत हो गया है), लेकिन बढ़ा हुआ वित्तीय आवंटन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उछाल देने में मददगार साबित होगा. अब तक मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिला है बजट का दूसरा अहम संदेश मध्यवर्ग से जुड़ा है. एक जमाने से टैक्सदाताओं के एक विशाल महत्वाकांक्षी वर्ग से जिसमें निम्न, मध्यम और ऊपरला कामगार तबका, स्वतंत्र पेशेवर और वणिज्य-व्यापार में लगा समुदाय शामिल है- उम्मीद की जाती रही है कि वह राष्ट्र-निर्माण के हक में टैक्स अदा करे लेकिन इस विशाल मध्यवर्गीय तबके को इसके बदले में बहुत कम हासिल हुआ है. नरेंद्र मोदी की सरकार को इस विशाल मध्यवर्गीय तबके का भारी समर्थन हासिल है लेकिन मोदी सरकार ने भी इस तबके के साथ वही पुरानी रणनीति अपनाई थी, उसे दुधारू गाय समझकर बरताव किया था और मानकर चला जा रहा था कि यह तबका तो बना ही है इसी खातिर. बात सिर्फ सालाना स्टैंडर्ड डिडक्शन में इजाफे या 5 लाख रुपए तक की आमदनी को टैक्समुक्त करने तक सीमित नहीं. बैंकों में जमा रकम से हासिल कर-योग्य सूद की सीमा 10 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने, मकान के किराए के मद में 2.4 लाख की रकम को स्रोत पर टैक्स कटौती से मुक्त करने और पूंजीगत लाभ के मद में 2 करोड़ तक की रकम को टैक्स के दायरे से बाहर रखने सरीखे ढेर सारे कदम उठाए गए हैं जिससे मध्यवर्ग को राहत मिलेगी, उसपर टैक्स का बोझ कम होगा. [caption id="attachment_188464" align="alignnone" width="1002"] पीयूष गोयल[/caption] इन उपायों से निकलता सबसे जरूरी संदेश यह है कि इस बार मध्यवर्ग को ताने-उलाहने नहीं दिए गए- यह नहीं कहा गया कि हे मध्यवर्गीय भद्रजन! आपका पवित्र कर्तव्य बनता है कि राष्ट्र-निर्माण के हक में टैक्स अदा करें, वैसा कोई व्यंग्य-बाण नहीं मारा गया जैसा कि 2012 में पी. चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते लोगों को सुनना पड़ा था (याद कीजिए, पी. चिदंबरम ने शहरी मध्यवर्ग को लक्ष्य करके एक सवाल के जवाब में कहा था कि जब आप 20 रुपए में आइसक्रीम खरीद सकते हैं तो फिर कीमतों के बढ़ने का इतना स्यापा क्यों करते हैं), इस बार सरकार ने मध्यवर्गीय तबके के योगदान को याद किया है और उसकी सराहना में कुछ शब्द कहे हैं. ये भी पढ़ें: Income Tax Slab 2019-20: गोयल की गुगली, सबको नहीं मिलेगा टैक्स छूट का फायदा! 'भारत की जनता और अपनी सरकार की तरफ से मैं सभी टैक्सदाताओं का राष्ट्र-निर्माण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद करता हूं. उनके इस योगदान के कारण समाज के गरीब और हाशिए के लोगों को बेहतर जीवन दे पाना मुमकिन हुआ है. आपके चुकाए टैक्स से हमें माताओं और बहनों को गरिमा का जीवन प्रदान करने, उन्हें शौचालय और गैस-कनेक्शन देने में मदद मिलती है- ये बहनें और माताएं पीढ़ियों से अंधकार में रहने को अभिशप्त थीं. जो टैक्स आप अदा करेंगे उससे 50 करोड़ भाई-बहनों, बच्चों को स्वास्थ्य-सेवा मुहैया कराई जा सकेगी. आप लोगों का ही योगदान है जो आज वन रैंक-वन पेंशन के जरिए हमारे रिटायर्ड जवानों को गरिमा, इज्जत और सुरक्षित भविष्य वाली जिंदगी मुहैया करा पाना मुमकिन हुआ है. टैक्सदाताओं का बहुत-बहुत धन्यवाद.' टैक्सदाताओं के योगदान को रेखांकित करते पीयूष गोयल के ये शब्द मध्यवर्गीय लोगों के एक हिस्से के दिल पर लगी चोट पर मरहम का काम कर सकते हैं. अपनी भावनाओं को पहुंची चोट के कारण मध्यवर्ग का यह हिस्सा बीजेपी के पाले से शायद दूर छिटक चला था. बेशक यह चतुराई भरा कदम है लेकिन राजनीति में चतुराई कोई अपराध नहीं.
Sunday, February 3, 2019
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Budget 2019: पॉपुलिस्ट है लेकिन मिडिल क्लास के लिए आखिरकार कारगर साबित हो सकता है ये बजट
Budget 2019: पॉपुलिस्ट है लेकिन मिडिल क्लास के लिए आखिरकार कारगर साबित हो सकता है ये बजट
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